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Praveen Gola

Romance

4  

Praveen Gola

Romance

क्यूँ आये ?

क्यूँ आये ?

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क्यूँ आये तुम इतने कम समय के लिए ?

फिर से आग भड़का के मेरे अंदर,

क्यूँ चले गए तुम उस अनंत समुन्दर ?


मैं गुम थी अपनी ही दुनिया में कहीं,

कोई सोचेगा मेरे लिए ये ना सोचा कभी,

क्यूँ आये तुम मुझसे ऐसे मिलने के लिए ?


आज तो वक़्त नहीं था भड़कने का,

अपने और तुम्हारे दिल के धड़कने का,

क्यूँ आये तुम मेरी फिक्र करने के लिए ?


आकर बना दी फिर तुमने कोई बात,

जब हम मुद्दे पर आये तब छोड़ दिया साथ,

क्यूँ आये तुम मेरा ज़ख्म हरा करने के लिए ?


बहुत कुछ बाकी रह गया अधूरा,

तुमने सुना नहीं कहा जल्दी में हूँ थोड़ा,

क्यूँ आये तुम मुझसे फिर उलझने के लिए ?


आज जाने दिया पर कल ना जाने दूँगी,

इस सुलगती आग का गिन-गिन के बदला लूँगी,

क्यूँ आये तुम इतने कम समय के लिए ?


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