क्यूँ आये ?
क्यूँ आये ?
क्यूँ आये तुम इतने कम समय के लिए ?
फिर से आग भड़का के मेरे अंदर,
क्यूँ चले गए तुम उस अनंत समुन्दर ?
मैं गुम थी अपनी ही दुनिया में कहीं,
कोई सोचेगा मेरे लिए ये ना सोचा कभी,
क्यूँ आये तुम मुझसे ऐसे मिलने के लिए ?
आज तो वक़्त नहीं था भड़कने का,
अपने और तुम्हारे दिल के धड़कने का,
क्यूँ आये तुम मेरी फिक्र करने के लिए ?
आकर बना दी फिर तुमने कोई बात,
जब हम मुद्दे पर आये तब छोड़ दिया साथ,
क्यूँ आये तुम मेरा ज़ख्म हरा करने के लिए ?
बहुत कुछ बाकी रह गया अधूरा,
तुमने सुना नहीं कहा जल्दी में हूँ थोड़ा,
क्यूँ आये तुम मुझसे फिर उलझने के लिए ?
आज जाने दिया पर कल ना जाने दूँगी,
इस सुलगती आग का गिन-गिन के बदला लूँगी,
क्यूँ आये तुम इतने कम समय के लिए ?

