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Pooran Bhatt

Children Stories Classics

4  

Pooran Bhatt

Children Stories Classics

गांधारी का श्राप

गांधारी का श्राप

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कटी भुजाएँ काँपे फड़ फड़..

कुरुक्षेत्र का विध्वंसक रण..

कहाँ द्रोण का शौर्य गया हैं? ..

कहाँ गया वो भीष्म रक्षक? ..

काल नृत्य कर रहा भाल पर .

बना हुआ मानव का भक्षक..

छल कपट प्रपंच में लिपट..

मारे गए सब भट्ट वीर विकट..

कौन करे विजेताओं का वंदन..

फैला हुआ है करुण क्रंदन..

सूखते अश्रु ना बहती पीर..

गीदड़ नोंच रहे मानव शरीर..

सौ पुत्रो के शवों से अधीर..

ढूंढती गांधारी कहाँ केशव वीर?

जीवन भर ना आँखें खोली..

पर आज क्रोधित हो कृष्ण से बोली..

हे! मुरली मनोहर द्वारकाधीश..

क्या देख रहे हों ये कटे शीश?

कौरव पाण्डव सब योद्धा मूढ़..

पर तुम्हें विदित था सत्य गूढ़..

पूछ रहा आर्यवर्त का कण कण..

क्यों रोका नही महाभारत का रण..

तुम हों अंत तुम ब्रह्माण्ड का आदी..

तो क्यों ना समझू तुम्हें युद्ध अपराधी..

मौन खड़े क्यों बने हों पत्थर..

सीधे प्रश्नों का दो सीधा उत्तर..

बोलो बोलो हे माधव मुरारी

टाल सका कौन बात तुम्हारी..

तुम भूत भविष्य वर्तमान के स्वामी..

क्यों बोलते नही कुछ अन्तर्यामी... 

जब माता का हृदय यूँ प्रश्न पूछता..

तब विधाता को कुछ नही सूझता..

सोलह कलाएँ औऱ सारे उपाय

ममता के सम्मुख निपट निसहाय

सम्भलो-सम्भलो हे केशव आप..

देती है ये गांधारी श्राप..

न मयूर पँख न चपल बंशी..

लड़ - लड़ मरेंगे सब यदुवंशी..

तुम नर श्रेष्ठ तुम विधाता होगे..

तुम परम ब्रह्म जग दाता होगे..

पर काल बड़ा ही होता उत्पाती...

हो ईश्वर पर मरोगे पशु भांति..

तुम्हारी योग माया, ये परम पाखंड..

देती है माता तुम्हें श्राप अखंड..

हाथ जोड़ गांधारी को शीश झुकाते हैं ..

सहर्ष स्वीकार श्राप प्रभु मुस्कुराते हैं .



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