तेरे शहर मे..
तेरे शहर मे..
"जब-जब तेरे शहर मे आता हूँ..
फ़ितरत से और जवान हो जाता हूँ..
आज भी दौड़ती हैं..
शहर मे मेरी यादें अकसर,
जब शाम को यूँ ही..
टहलने निकल जाता हूँ ...
क्यों टूट जाता?..
ये वक़्त का आईना..
मैं तुम्हे आईने के पार देखना चाहता हूँ.. .
ज़िक्र आता है यारों मे तेरा ,
मैं खामोश, तन्हा सुनसान सा हो जाता हूँ ...
जब- जब तेरे शहर मे आता हूँ..
फ़ितरत से और जवान हो जाता हूँ. .
एक उम्र बीत गई शहर मे कोहरा बन कर.
फ़िर क्यों बारिश के मौसम मे
अकेला वीरान सा हो जाता हूँ ..
आज भी अक्सर गुज़रता हूँ..
तेरे हॉस्टिल के आगे से ..
पर नज़रे झुका कर
बस यू ही अंजान सा हो जाता हूँ..
चार दिन गुजर जाते हैं
यादों.. मुलाकातों मे...
और फिर शहर के लिए
एक अजनबी मेहमान सा हो जाता हूँ ..
जब जब तेरे शहर मे आता हूँ ।

