किन्नर
किन्नर
सज रही गली मेरी माँ सुनहरे गोटे में।" हाथ में ढोलक चेहरे पर मुस्कान रंगीन कपड़ो में सजे धजे किन्नर शादी वाले घर में पहुँच गए। और खूब धमाल मचाने लगे। ताली बजा बजा के बधाइयाँ देते। आँखें मटका मटका के नाचते किन्नर कभी दूल्हे के बाबा का हाथ खींच लेते तो कभी दूल्हे की माँ को नचाने लगते।दास बाबू अपने कमरे में थे की चिंकी दौड़ कर उनके पास आई।दादा दा दा।आँगन में आओ न!!! देखो नाचने वाले आए हैं बधाई माँगने वाले। आओ तो।
दास बाबू का मूड ख़राब हो गया। ये साले हिजड़े भी न।कोई गन्दी गाली देने वाले थे की चिंकी को देख कर शब्दों को अपने ही मुँह में दबा गए।
पता नहीं लोग इन्हे घरों में आने ही क्यों देते हैं।साले जनाना न मर्द अलग ही पाप बनाया है ईश्वर ने।मुझे तो देखकर ही घिन आती है इन्हे। दास बाबू अपनी पत्नी प्रभा को सुनाने लगे। प्रभा जानती है कि दास बाबू भले ही गली के कुत्ते को गले लगा लें।
लेकिन ये किन्नर इन्हे फूटी आँख नहीं सुहातें हैं।
दास बाबू बधाई की रक़म को लेकर उलझ गए। बाबू जी छुटके का ब्याह है तो क्या सारा पैसा इनमे ही लूटा दें।
काहे के 5000 ये लीजिए 500 रूपये मारिये इनके मुँह पर और भगाइये इन्हे। किन्नर भी तू तू। मै मैं। पर उतर आए। दूल्हे और उसके परिवार को तो दुवाएँ दी। पर दास बाबू को बहुत बुरा भला सुना गए।
दास बाबू की साँसे उखड़ने लगी थी। पूरा जीवन आँखों के आगे दौड़ने लगा। अस्पताल के इस कमरे में पूरे दो महीनें हो गए। कैंसर रोग ही ऐसा है। प्रभा सामने बैठी देखती थी और घड़ी -घड़ी रो पडती थी।
जाने किस पाप की सज़ा है।
पाप।
और दास बाबू फ़िर अतीत के भॅवर में उलझ जाते।
दो बच्चों के बाद सोचा था की कोई बच्चा नहीं और नसबंदी। पर हाय री किस्मत दोनों लड़कियाँ हो गई। वंश तो आगे बढ़ाना ही होगा न।
अम्मा ने कितने जंतर किये कितने हकीमों से दवा ली। व्रत, उपवास हवन सब किये।
बधाई हो आप को बच्चा हुआ है।उसे हाथ में उठाकर दास बाबू कितने भावुक हो गए थे।
अरे ये क्या???।मुन्ना नहाएगा न।हमारा मुन्ना। नाही नाही करेगा.।
दास बाबू चिल्लाते हुए बाहर भागे मुन्ना।तो।
प्रभा शायद ये सच जानती थी।उसने दास बाबू को शांत किया। घर में किन्नर पैदा हुआ था। दास बाबू फूट -फूट कर रोने लगे। इससे अच्छा अंधा, लूला, लंगड़ा पैदा हो जाता। या और कुछ। लेकिन हिजड़ा ही पैदा होना था।
दास बाबू ने फैसला कर लिया की इसे मार डालेंगे। प्रभा ने पैर पकड़ लिये उनके रोती रही। दुहाइयाँ देती रही। अम्मा ने बीच में आकर बचा लिया मुन्ना को।
दोनों बहने उसे बहुत प्यार करती। उसका नाम लड़को वाला था सूरज।गोल चेहरा, घूँघराले भूरे बाल, गोरा रंग। और प्यारी सी मुस्कान।
उसे सख़्त हिदायत थी दास बाबू के सामने न आने की। अगला बच्चा भी हुआ एक लड़का 100% शुद्ध लड़का। दास बाबू की आत्मा को सुकून मिला और एक हिजड़े का बाप बनने की ग्लानि थोड़ा कम हुई।
जब कभी सूरज उनके सामने आता तो दास बाबू का खून खौल उठता। उसकी कोमल मुस्कान, भोला चेहरा भी दास बाबू की नफरत कम नहीं कर पाता। कभी कभी तो मन करता उसका गला दबा दिया जाए.
दोनों बहने उसे खूब सजाती। अम्मा उसपर खूब प्यार लुटाती। स्कूल भेजनें की कोई जरुरत नहीं है इसे। दास बाबू माँ पर चिल्लाए। क्या अब पूरी दुनिया को बताना है की हमने एक हिजड़ा जना है। वो "हिजड़ा " का मतलब नहीं समझता पर हाँ उसे इतना पता था की उसने कुछ बुरा किया है।दास बाबू को कोई गहरा दुःख दिया है।उसका बाल मन बहुत से ज़ख्मो से खुरच जाता।
ऐ मीठे।छक्के.।हिजड़े.।
बड़े लड़के उसे सताते।वो समझ नहीं पाता उसने क्या जुर्म किया है जो सब उसे सताते हैं। उसकी गलती क्या है। उसमे क्या कमी है?
अम्मा का स्वर्गवास हो गया। अभी तेरहवी भी नहीं हुई थी की रोते बिलखते सूरज़ को घसीटते हुए सीधा किन्नरों के आश्रम में छोड़ आए।दास बाबू।
प्रभा और बहने बहुत रोए। छोटा सा बच्चा कैसे रहेगा वहां।।
दास बाबू की आँखें बंद होने लगी थी। आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा था। प्रभा उनसे लिपट के रोने लगी।दास बाबू को बेटा याद आने लगा। दोनों बेटियों की शादी तो 17-18 की उम्र में ही करवा दी थी। और बेटा वो तो राजा था घर का उसको हर वो सुविधा मिली जो दास बाबू की औक़ात में थी।
कपड़े, बाइक, अच्छा खाना। पैसे।और बेटा हाथ से निकल गया। नशा, शराब, नाच गाना यही सब उसकी दिनचर्या थी. दास बाबू के रिटायर्डमेन्ट का पैसा भी अय्याशियों में उड़ा दिया।
कितनी बार दास बाबू और प्रभा पर भी हाथ उठाया था उसने। दास बाबू का कैंसर तीसरी स्टेज पर पहुँच गया था।ईलाज़ के पैसे गाँव की जमीन बेचकर ही मिल सकतें हैं।
अरे कागज़ कहाँ गए जमीन के?
वो तो बेच दी मैंने। बेटा बड़ी बेशर्मी से बोला।
वैसे भी कितने दिन और जी लोगे। मर भी जाओगे तो क्या फर्क पड़ जाएगा।
सरकारी हस्पताल में पड़े पड़े और मौत का इंतज़ार करते दास बाबू को एक दिन शहर के बहुत बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कर दिया गया।हरा सूट सलवार पहने सामने एक खूबसूरत सी लड़की खड़ी थी। राजस्व विभाग में अपर आयुक्त सूरज दास।दास बाबू की आँखों से नदियाँ उमड़ आई।अपने को लज्जित महसूस करने लगे। एक छोटे से बच्चे ने ना जाने क्या क्या सहा होगा।
पर उसके चेहरे पर किसी प्रकार की नाराज़गी नहीं थी ना कोई अफ़सोस। बाबा आप ठीक हो जाओगे। उसने दास बाबू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।
दास बाबू मिटा देना चाहते हैं अपना अतीत।कितने पापी। कितने मुर्ख थे वो।
माँ अब कैसी है बाबूजी की तबीयत सूरज हस्पताल के कमरे में पहुंची।चेतना का पंछी उड़ चुका था। दास बाबू के हाथ जुड़े हुए थे शायद सूरज के पैर छूकर माफ़ी मांगना चाहते थे मरने से पहले।
शरीर ठंडा पड़ा था।
माँ रोए जा रही थी।
एक अंत हुआ था।एक नए आरम्भ के लिये।
