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Pooran Bhatt

Tragedy

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Pooran Bhatt

Tragedy

पहचान

पहचान

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बास मारते

जानवर के चमड़े को..

सड़ांध मारते हौज़ से खींचना..

और उसमे गुंथे हुए रोए - रोए को अलग करना..

और फिर एक चमचमाते जूते की शक्ल देना...

हो सकता है काम हो..

पर देहात मे पहचान है अस्तित्व की..

पीढ़ियों की गुलामी..

और छोटे बहुत छोटे होने की. .


ये उतना ही सच है .

जितना मधुमक्खी का भिनभिनाना..

जितना भेड़िये के बच्चे का जवान हो जाना..

जितना भेड़ के बच्चे का बचपन मे मर जाना..

घोड़ी पर बैठ कर बारात निकालना

हो सकता है रिवाज़ हो

लेकिन किसी के लिये ये अपराध है..


इतना बड़ा की पूरी बारात को घेर कर..

जलती भट्टियों मे झोंक दिया जाए..

चीखों को घोंट दिया जाए...

और धर्म का अनुशासन लाया जाए

ताकि आगे से कोई

श्रेष्ठता को चुनौती न दे नस्ल की

मान ले विधाता का लेख..

ये पहचान चिपक जाती है खाल से

जैसे कोई मायावी जोंक

फिर जो नहा लो

तुम गमगमाते महकते साबुन से

या गंगा के जल मे डूब जाओ..

तुम अछूत ही रहते हो..


पीढ़ियों तक..

शुद्ध अछूत।














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