अब इम्तिहान कौन देगा?
अब इम्तिहान कौन देगा?
ज़ब तलक ज़िन्दा है,ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे ,
तेरे बाद तेरे हिस्से का इम्तिहाँ कोई नहीं देगा !
इब जो दर्द तेरा है उसका सायबाँ कोई नहीं देगा ,
तुझे ऐसा सुकूँ का कुशादाँ आसमाँ कोई नहीं देगा !
जो प्यास अपनी हो तो अपने साथ रक्खो बादल भी,
ये मतलबी दुनिया है, विरासत में कुआँ कोई नहीं देगा !
हवा ने बेरहमी से अल्लसुब्ह चिड़ी के पर काट डाले हैं,
बागवां चुप है,यहाँ ठठराए दरख़्तों में अज़ाँ कोई नहीं देगा !
यहाँ वहाँ मिलेंगे तुम्हें मुफ़्त शोलों की क़बाएँ बाँटने वाले,
मगर सिर छुपाने को तुम्हें अदद पक्का मकाँ कोई नहीं देगा !
ये ज़िन्दगी ज़ब बन जाएगी बेवा दुल्हन सी,भीगी हुई लकड़ी सी,
तेरे एहसासों की कोठरी धुआंधर जलेगी, धुआँ कोई नहीं देगा!
