ख्वाहिशें
ख्वाहिशें
ख्वाहिशों के रथों पे वो बैठे हुए,
मन के घोड़ों को दौड़ा रहे हैं।
मंजिल किसी की सुगम ना रही,
अपने मन को वो भरमा रहे हैं।।
पांव धरते नहीं वो जमी पे कहीं,
नभ में नजरों को दौड़ा रहे हैं।
काम करते नहीं वो बैठे रहें,
शेखचिल्ली बने जा रहे हैं।।
ख्वाहिशों के...
वो ऐंसे फंसे हैं भंवर जाल में,
तन धन को वो लुटवा रहे हैं।
उनकी इज्जत नहीं एक कौड़ी की भी,
भेलसा तोप कहला रहे हैं।।
ख्वाहिशों के...
पैसा गंवाया है उनने सभी,
भाग्य को कोसे वो जा रहे हैं।
फैशन की धुनके वो मारे,
राह पता ही नहीं जा रहे हैं।।
ख्वाहिशों के...
