ये कैसी ज़िन्दगी...???
ये कैसी ज़िन्दगी...???
पानी से प्यास तो
बुझती है, मगर...
लालसा की अग्नि
जब तन-मन को
जलाती है,
तब इंसान
आफत-का-पुुुतला बन
अपने ही पैरों पर
कुल्हाड़ी मारने को
अमादा हो जाता है।
लालसा वो मरीचिका है,
जिसके मोहपाश मेें खामख्वाह
फँसकर इंंसान को उसका
खामियाजा भुगतना पड़ता है...!
और आखिर बेचैन इंसान
बेलग़ाम घोड़े की भाँति
आनन-फानन दौड़ता फिरता है...!
उसे अंंततः किश्तों मेंं
बेतहाशा-बेसुध ज़िन्दगी मिलती है,
जो जीकर भी बेमौत ज़िन्दगी-सी लगती है...
