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S N Sharma

Abstract Tragedy

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S N Sharma

Abstract Tragedy

बड़े अरमान थे दिल के।

बड़े अरमान थे दिल के।

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बड़े अरमान थे दिल के निरा सपना निकले।

जैसे अर्थी को दे कांधा कोई अपना निकले।


मेरी परछाई बनने का किया वादा जिसने।

अंधेरी रात आई सनम कल्पना निकले।


मैंने सांसों में बसाया उन्हें खुशबू की तरह।

लुटेरे वफा का मुखौटा लगा अपना निकले।


सितम की आग में इस तरह डाला मुझको।

जहां से खाक हुई दिल की तमन्ना निकले।


जवानी में हमें सर आंखों पे जो बिठाते थे।

बुढ़ापे में अकेला छोड़ घर अपना निकले।



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