कब तक......
कब तक......
कब तक......
कब तक यूं ही दूर रहोगे,
कब तक हमसे नहीं बोलोगे,
किस हाल में रहते हो तुम,
क्या भेद नहीं सब खोलोगे।
दूर रहो जालिम दुनियां से,
अपना पराया नहीं जानती,
बुरे को चाहती सदा दुनिया,
सज्जन को नहीं पहचानती।
खुश रहना गम से दूर रहो,
कितने दुख तुम सहती थी,
दु:साध्य रोग ने यूं सताया,
तुम अपनों से कहती थी।
स्वर्गलोक जिसको मानते
स्वर्गवासी कहलाती तुम,
एक प्यारी सी छवि हँसी,
आज न जाने क्यों है गुम।
वो प्रभु भी दे जाता कभी,
घाव कभी नहीं भर पाते,
जब जब कभी दर्शन हो,
खून के आंसू रोज रुलाते।
भूल गये वो वादे किये थे,
इस जग की रीत पुरानी है,
भूल जाते हैं स्वर्गलोक में,
मृत्युलोक की ये कहानी है।।
