ऐसी कैसी मज़बूरी है?
ऐसी कैसी मज़बूरी है?
चाहे रूठकर जाए या टूटकर ,
वो हर बार अपने जाते हुए ,
भरसक वापिस लौट आने की...
थोड़ी सी उम्मीद छोड़ जाता है !
जिस पेड़ पर बांधा किये,
मन्नत का धागा मिलकर...
उसका दूसरा सिरा थोड़ा ,
अधखुला सा मरोड़ जाता है !
अधनिंदा सबको छोड़कर ,
दबे पांव निकलते हुए...
चिराग जलता छोड़ जाता है ;
यूँ वापस आने की आस छोड़ जाता है !
ये क्या कह रहे हो कि...
कोई मज़बूरी आन पड़ी है कि...
अब मेरा और साथ ना दे पाओगे ;
और एक कदम भी संग चल ना पाओगे !
बनिस्बत इसके एक बार कह देते कि...
चले भी जाओ मेरी जिंदगी से कि...
अब पतझड़ लगने लगा हूँ मैं ;
रस का मौसम जो खत्म हो चुका ,
आँखों में किरच की तरह चुभने लगा हूँ मैं !