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Navneet Gupta

Tragedy

4  

Navneet Gupta

Tragedy

समर_अपने अपने

समर_अपने अपने

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रोज के युद्ध खिंचते युद्ध 

कभी ना ख़त्म होने वाले युद्ध 

…. ये समर चलते हों, रहते हैं॥


इज़राइल का अपने बंदों के डाके का

अपनी आन बान शान बिखरने का

उस पर आघात का।

किस घुटन में वे जी रहे हैं

मानव के बंधक बने होने पर।

…., अभी जारी है

विराम और समझौतों के बीच।

वहाँ जीवन जीव जा रहे हैं॥


भारत का

करुणा दया संघर्ष प्रयास का

अपने बंदों को गुफा से जीवित निकालने का।

उम्मीद और संभावना पर

किस घुटन में वो होंगे आपदा बंधक बने॥

सूरज की रौशनी से दूर, सीमित हवा में॥

समर जारी है॥


रूस के इतराते अतिक्रमण 

जिसका अंत 

अभी नहीं दीखा।

रोज वाली दिनचर्या जैसा 

बन रहा है महीनों से

उस में फँसे जन और मानस

किस समर से जूझते॥


कैसे कैसे

कब कब

कहाँ कहाँ 

किस किस को

झेलनें पड़े ।


प्रार्थना धर्म सब लाचार।

क्या लाभ इन सब में बंटने का

बस मानवीयता की ज़रूरत पूरी करें।



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