वृद्ध
वृद्ध
बूढ़ा बूढ़ी कह रहे, कितना बुरा संसार,
इंसानों को भूलकर, धन से करते प्यार।
एक दिन सब में आएगा,बुढ़ापा है नाम,
धन दौलत सब छोड़कर,जाना प्रभु धाम।।
जब तक थे हम काम के, करते थे प्यार,
काम धाम करते नहीं,बदले जन विचार।
टूटी खाट पर पड़े हैं, रोटी की लगे भूख,
बेटा बेटी नहीं देखते, कौन सी की चूक।।
कद्र घटी है जहां में, वृद्धाश्रम देते छोड़,
पाला पोषा जिनको,वो लेते हैं मुख मोड़।
सर्दी गर्मी नहीं पूछते, दर्द सहे दिन रात,
धन दौलत से प्रेम है, बदले जन हालात।
आएगा वो दिन कभी, लौटेंगे फिर दिन,
कांप उठेंगे जन सभी, बीतेंगे दिन गिन।
याद आता दिल में, श्रवण कुमार आज,
मात पिता की सेवा, होता था जन नाज।।
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