" जीवन-मृत्यु “
" जीवन-मृत्यु “
हे पथिक ,
तू क्यों परेशान हैरान ।
और किंकर्तव्यविमूढ़ हैं ,
मत ले जीवन को ।
इतनी गंभीरता से ,
यह पानी का बुलबुला हैं ।
चिंगारी है ,
जीवन की राहों में।
परेशानियों को ,
कर लो एक खेल।
बुलबुला है जीवन,
हकीकत से प्यार करो।
तू जी,
उस साधू की तरह ।
जो घूमता हैं एक जगह से ,
दूसरी जगह इस डर से ।
ठहराव आकर्षण ,
लोभ में बाँध देगा ।
मृत्यु की छाया से,
होता है संगीत ।
जीवन की धुन में,
मृत्यु का रहस्य गूंथ।
हर पल, जीवन-मृत्यु का खेल,
मत कर जीवन से इतना प्यार।
जीवन-मृत्यु का संगम,
सृष्टि की निरंतर धारा ।
जीवन की छाया में ,
बसा है मृत्यु का साया ।
जीवन-मृत्यु के संगम में,
छूपा है सच्चाई का रहस्य।
जीवन-मृत्यु में,
धुंधली सी रातें।
और बेरंग सा संसार,
आत्मा की छाया ।
जीवन की धुन,
खोज में हैं अर्थ का सूर।
यात्रा का सार,
एक अनदेखा संग।
जीवन के सार्थक,
मृत्यु के अंग में है ।
जीवन की गहराइयों में,
अनवरत आध्यात्मिक सार।