साफ घर
साफ घर
आकर तो देखो घर वैसा ही साफ है जैसा तुम चाहते थे देखना।
तीन दिन हो गए मैं तो अब चाहती भी नहीं उठना।
बेटी की विदाई के बाद खोली नहीं मैंने उसकी अलमारी।
कुछ पुराने कपड़े छोड़कर उसने ही कर दी थी अलमारी खाली सारी।
अबके जाते हुए बेटे ने भी
अपना बैट, रैकेट और सारा सामान उठाया था।
पैकिंग के बाद साफ कर दिया था उसने जो कुछ भी फैलाया था।
सासू मां के जाने के बाद फेंक दी थी सारी दवाई की शीशियां।
अब यहां वहां नहीं फैली मिलती है डॉक्टर की पर्चियां।
बच्चों के दोस्त भी अब आते नहीं।
चाय नाश्ते के बर्तन भी अब फैलाते नहीं।
बैठ जाओ कुर्सी पर तो उठने की जरूरत ही नहीं।
कोई भी तो इस घर में अब आता जाता नहीं।
यूं ही कान में आवाज गूंजती रहती हैं।
कोई भी तो कमरे में बोलता नहीं ,
न जाने फिर भी हर समय कान में किसकी आवाज सुनती है।
यह जीवन है मिलता इस जीवन में सब कुछ है जो कि हम चाहते हैं।
बस समय बदल जाता है तब क्यों नहीं मिलता जब हम चाहते हैं?