जो कहना था वो शेष रह गया...
जो कहना था वो शेष रह गया...
वह दो साल...
जो बिताए थे तुम्हारे साथ तुम्हारे शहर में
वो मेरी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पल बन गए
मेरी नासमझी मेरी खामोशी
उन सब का जिम्मेदार मैं ही हूं
जो आग सुलगती रही दिल में
कुछ जलता रहा वर्षों से
और कुछ अवशेष रह गया;
दशकों पहले जो कह देना था तुमसे
वह कभी न कह पाया
अब जब तुमसे सब कहना चाहता हूं
तुम्हारे नाम के सिवा....
और न कुछ संदेश रह गया;
ये उलझनें क्यूँकर पैदा हुईं
क्यों कमजोर पड़ गए जज्बात मेरे
मेरे होठों ने क्यों न साथ दिया
मन में यह क्लेश रह गया;
तुमसे प्यार किया
लम्हा....हर लम्हा
तुमने प्यार किया था...?
या
ना किया कभी
मन में यह अंदेश रह गया;
सब कुछ पाकर भी
जीवन में कुछ ना विशेष रह गया
मेरी मनीषा अधूरी रह गई,
और जो कहना था तुमसे
वह शेष रह गया.

