"ताज़महल"
"ताज़महल"
क्यूँ ना मुझे तुम भी अपनी ज़िद बना लो,
तोड़ कर सारी हदें, मुझे अपनी हद बना लो,
माना हैं जरूरतें तुम्हारी और भी बहुत सारी,
ऐसा करो तुम, मुझे भी अपनी जरूरत बना लो,
खुदा का शुक्र है कि तुमसे मिला था मैं,
मुझसे मिलने की तुम भी तो खैरियत मना लो,
है कितना ही फ़रेब, है बनावटी ये दुनिया,
क्यों ना मुझे तुम इस सारे जहाँ से चुरा लो,
कभी सर्द हैं हवाएं, कभी तपिश है कितनी,
मुझे तुम तो अपनी पलकों में छुपा लो,
छूट जायेगा सब यहीं, खत्म हो जायेगा सब,
जो कभी खत्म ना हो, मुझे ऐसी गज़ल बना लो,
बिखर जायेंगे तुम्हारे ये सारे काँच के महल,
जो ज़िन्दा रहे मुझमें, ऐसा कोई ताजमहल बना लो।