पहाड़ों पर बस मकान..
पहाड़ों पर बस मकान..
अब पहाड़ो में लोग नहीं रहते
मकान तो है पर घर नहीं बसते,
वह खिड़कियाँ जो हर सुबह खुल जाया करती थी
और हर रोज़ सुनहरी धूप जिनसे अंदर आ जाया करती थी,
अब वह ख़ुद के खुलने का इंतज़ार कर रहीं है ...
क्योंकि अब पहाड़ो में लोग नहीं रहते
मकान तो है पर घर नहीं बसते॥
लोगों से भरे घर अब खाली हो रहे हैं
चार दीवारी से बने मकानों पर अब मकड़ी के जाले बन रहे हैं,
क्योंकि पहाड़ो पर अब लोग नहीं रहते
मकान तो है पर घर नहीं बसते॥
कुछ मजबूरियाँ, कुछ ख्वाहिशें लोगों को शहर ले आई,
जहाँ पहले चहल पहल रहती थी
वहाँ अब विरानियत है छाई...
क्योंकि अब पहाड़ो पर लोग नहीं रहते
मकान तो है पर घर नहीं बसते॥