मनोव्यथा
मनोव्यथा
बैठती हूं सोचने, हृदय भर आता है,
दुनिया में कितना गम है, तब समझ आता है
दिन भर तो निकल जाता है भागम भागी में,
रात होते ही एक डर सा समा जाता है।
क्या होगा कल सुबह , रोटी मिलेगी या नहीं,
बच्चों की फीस कैसे भरेंगे, दवाई कैसे लाएंगे,
कैसे कमाएंगे, ऐसे ख्यालों से पूरी रात का सफर निकल जाता है।
बैठती हूं सोचने, हृदय भर आता है।।
झांकती हूं आस-पास तब दिखता है,
एक अंधा, एक बीमार, एक लाचार नज़र आता है,
कोई भूख से मर रहा है तो, कोई रोटी के लिए मार रहा है,
हर तरफ हाहाकार है।
बैठती हूं सोचने, हृदय भर आता है,
दुनिया में कितना गम है, तब समझ आता है।।
