कड़ुआ सच्
कड़ुआ सच्
सुबूक जिंदगी की
शब तख्ल होती हैं।
खौफनाक तारिक और
सोचें भुक्त वास्तविक।।
दिन सुनहरी मायाजाल
नकली चेहरे कर्ज लिए।
बनावटी खुशी साथ लिए,
फिरते हैं यहां सहरो-शाम।।
भयभीत है राजा हर पल
अपने नाम-मान को लेकर।
रंक को सताती है पीड़ा
रोजी-रोटी की हर पल।।
भाग रहा है हर इंसान ना जाने
कौन -सी दौड़ में हो शामिल।
दिल में है घनघोर अंधेरा और
चेहरे में है बनावटी हंसी यहां
हर किसी के साथ है शामिल।।