मेरा साथी
मेरा साथी
उछल थी,कूदती मैं कभी,
संग सखियों के नाची गाती,
थी कभी,
हर पल हर दिन,
इक नई सुरुआत,
किया करती थीं मैं,
बिना अखबार के,
मेरा दिन न गुजरता था,
रोज नई-नई खबरें,
दुनिया भर की बातें,
पर किस्मत को मेरी खुशी,
रास न आई, अब दिन नहीं
कटते बिना ना दवाई,
रोज नई-नई खबरें,
नई नई कहानी या,
रोज नए किस्से,
बिस्तर पर पड़ा,
करती हूँ अब,
ना कोई साथी,
ना कोई हमसफ़र,
न कोई ऐसा ,
जिससे करें हम बात,
अकेली तन्हा हो गई थी मैं ,
अगर जो अखबार न
बनता मेरा साथी,
पूरा दिन बस
यूँ ही कट जाता,
अखबार पढ़ते, पढ़ते,
हर रोज खबर कोई
होती हटके।