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Devanshu Ruparelia

Tragedy

3.8  

Devanshu Ruparelia

Tragedy

शहर

शहर

1 min
326


सुबह सूरज निकलने से पहले ही 

कानों में गूँजती है मिलों के सायरन की आवाज़ें 

एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में 

अपने आप को भूलकर

हर रोज़ ज़हर का घुट पीते लोग 

छोटे छोटे घरों में घुटन भरी साँस लेते लोग 

राशन पानी घर बिजली की किश्तों की भुगतान में ज़िन्दगी खोते लोग 

यही तो एक शहर की पहचान है..........

ठहराव नहीं 

बेफिक्री नहीं 

एक दूसरे को घुरते घुर्राते लोग 

आँख के बदले आँख 

और जान के बदले जान 

बहुत सस्ती है ज़िन्दगी यहाँ 

कुछ हज़ारों के लिए दूसरों के दिलों को छलनी करते लोग 

यही तो एक शहर की पहचान है.......

जहां रात को कोई सोता नहीं 

जहां दिन में भी ख्वाबों की ख़रीद फरोख्त 

जहां राह देखती माँ की निगाहें नहीं 

जहां किस्से सुनाती दादा दादी की कहानियाँ नहीं 

यही तो एक शहर की पहचान है......


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