शहर
शहर
सुबह सूरज निकलने से पहले ही
कानों में गूँजती है मिलों के सायरन की आवाज़ें
एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में
अपने आप को भूलकर
हर रोज़ ज़हर का घुट पीते लोग
छोटे छोटे घरों में घुटन भरी साँस लेते लोग
राशन पानी घर बिजली की किश्तों की भुगतान में ज़िन्दगी खोते लोग
यही तो एक शहर की पहचान है..........
ठहराव नहीं
बेफिक्री नहीं
एक दूसरे को घुरते घुर्राते लोग
आँख के बदले आँख
और जान के बदले जान
बहुत सस्ती है ज़िन्दगी यहाँ
कुछ हज़ारों के लिए दूसरों के दिलों को छलनी करते लोग
यही तो एक शहर की पहचान है.......
जहां रात को कोई सोता नहीं
जहां दिन में भी ख्वाबों की ख़रीद फरोख्त
जहां राह देखती माँ की निगाहें नहीं
जहां किस्से सुनाती दादा दादी की कहानियाँ नहीं
यही तो एक शहर की पहचान है......