दोस्ती
दोस्ती
वह रूठ जाना तेरा हर छोटी बात पे
और फिर मान जाना तेरा एक प्यारी सी डील पे
याद है सब कुछ मुझे ....
मेरे हर खिलौने पे पहले अपना हक़ जताना
और फिर हर हक़ पे निभाई हुई क़ुरबानी तेरी
याद है सब कुछ मुझे ....
नुक्कड़ के चौराहों पे और चाय की टपरी पे
शहर की भीड़ में और गमगीन करनेवाले अकेलेपन में
तेरा दिया हर साथ सहारा
याद है सब कुछ मुझे ....
मेरे हर अहसास को बिना शब्द सुन लेना
और शब्दों में छिपे मेरे हर जज़्बातों को अपना किनारा देना
याद है सब कुछ मुझे ....
मेरे इमारत की बुलंदी की गहराई में तेरी सिखाई हर एक बातें
सफलता के लिये उठे मेरे कदमों की आलोचना और सराहना
याद है सब कुछ मुझे ...
तेरी दोस्ती के दावों की हर सच्चाई ,हर वादा ,हर जीत ,हर हार ,हर रंग ,हर भरोसा
याद है ए दोस्त सब कुछ मुझे .....