STORYMIRROR

Devanshu Ruparelia

Others

4  

Devanshu Ruparelia

Others

क्या सुनहरे पल थे वह भी.....

क्या सुनहरे पल थे वह भी.....

1 min
497

सोचता हूँ मैं कहीं रूककर आज भी 

क्या सुनहरे पल थे वह भी 

गली मुहोल्लो में पतंग के पीछे भागना 

टपरी दाँव के खेल मे ख़ुशी ख़ुशी हारना 

माँ के पल्लू से अपने हाथ पोछना 

रसोई से रोटी का बीड़ा बना के भाग जाना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी........

पिताजी की साइकल की घंटी से डरकर 

क़िताब खोलके पढाई का दिखावा करना 

और उनके घर से जाते ही आँगन से छलाँग लगाके दौड़ लगाना 

दिवाली पे नए कपड़ो का दोस्तों पे रौफ जमाना 

दादा दादी से मिले पैसो को गिन गिन गुल्लर मे डालना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी........

रात को माँ के साथ छत पे तारे गिनकर 

 बादलों मे चहेरे ढूढ़ना 

नरम मुलायम रजाई मे माँ का मुझे थपकी देकर सुलाना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी.....

स्कुल मे युही कभी पेट दर्द की शिकायत कर छुट्टी मारना 

परीक्षा के दिन चुपके से नक़ल करके करके पास हो जाना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी......... 

कोई तो लौटादे मेरे वह बचपन के प्यारे दिनों को 

बदले में ले ले मुझसे ज़माने की दौलत 

सच मे क्या सहारे पल थे वह भी.



Rate this content
Log in