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Devanshu Ruparelia

Others

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Devanshu Ruparelia

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क्या सुनहरे पल थे वह भी.....

क्या सुनहरे पल थे वह भी.....

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सोचता हूँ मैं कहीं रूककर आज भी 

क्या सुनहरे पल थे वह भी 

गली मुहोल्लो में पतंग के पीछे भागना 

टपरी दाँव के खेल मे ख़ुशी ख़ुशी हारना 

माँ के पल्लू से अपने हाथ पोछना 

रसोई से रोटी का बीड़ा बना के भाग जाना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी........

पिताजी की साइकल की घंटी से डरकर 

क़िताब खोलके पढाई का दिखावा करना 

और उनके घर से जाते ही आँगन से छलाँग लगाके दौड़ लगाना 

दिवाली पे नए कपड़ो का दोस्तों पे रौफ जमाना 

दादा दादी से मिले पैसो को गिन गिन गुल्लर मे डालना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी........

रात को माँ के साथ छत पे तारे गिनकर 

 बादलों मे चहेरे ढूढ़ना 

नरम मुलायम रजाई मे माँ का मुझे थपकी देकर सुलाना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी.....

स्कुल मे युही कभी पेट दर्द की शिकायत कर छुट्टी मारना 

परीक्षा के दिन चुपके से नक़ल करके करके पास हो जाना 

क्या सुनहरे पल थे वह भी......... 

कोई तो लौटादे मेरे वह बचपन के प्यारे दिनों को 

बदले में ले ले मुझसे ज़माने की दौलत 

सच मे क्या सहारे पल थे वह भी.



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