STORYMIRROR

Devanshu Ruparelia

Abstract

4.4  

Devanshu Ruparelia

Abstract

तलाश

तलाश

1 min
551


तलाश है मुझे अपने खोये हुए अस्तित्व की 

उस नयी राह की जो सफर बने मेरे आत्मखोज की 

आसमाँ छुने की चाह नहीं मुझको 

सरल रास्तों की फिसलन नहीं लालच मेरी 

दिलो की फ़कीरी अब लुभाये मुझे 

हौसलों के तरकश में 


उम्मीदों का तीर रखना है मुझे 

तलाश है मुझे अपने खोये हुए अस्तित्व की .....

भीड़ मे उठी सबसे बुलंद आवाज़ बनकर 

अन्याय के ख़िलाफ़ सबसे पहले उठनेवाली लाठी बनकर 

हक़ माँगने की मजबुरी नहीं कानून को अमल कर 

तलाश है मुझे अपने खोये हुए आस्तित्व की.......


नेतृत्व के नियमों में अब शामिल नहीं मैं 

कलयुग मे रामयुग लाने के झूठे वादों में शामिल नहीं मैं 

बहते लहू की क्रान्ति के सिराहने पर चमकने के लिये 

तलाश है मुझे अपने खोये हुए अस्तित्व की......।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract