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Devanshu Ruparelia

Abstract

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Devanshu Ruparelia

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काश दुनिया गोल ना होती

काश दुनिया गोल ना होती

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सोचता हूँ अक्सर मैं 

की काश ये दुनिया गोल ना होती.......

क्यों की गोल का कोई किनारा नही 

बस चलती है मध्यबिंदु के सहारे 

शाम को ढल जाना 

रात से डर जाना 


सुबह फ़िर बिना मंज़िल की रफ़्तार 

हर शून्य पे सवार होके घूमती है ये दुनिया 

काश ये दुनिया गोल ना होती........

सबके अपने अपने अफ़साने है 

कही गिरते पड़ते पैमाने है 

कोई आगे कोई पीछे 

कोई ऊपर कोई नीचे 


सच मे मेरी समझ से बहोत परे है ये दुनिया 

रुको ज़रा 

ठहरो ज़रा 

थक गए हो 

दो घड़ी साथ हो लो ज़रा 

फ़िर चल पड़ो 


अपने सपनो के रंगो में यक़ीन को संफाले 

ख्वाबों के पंखों से औक़ात से उठकर 

बेवक़्त 

बेवज़ह 

निरंतर 

बस चलते रहो 

पर सोचता हूँ अक्सर मैं 

कि काश ये दुनिया गोल ना होती।


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