ज़रा सोचो तो..
ज़रा सोचो तो..
सुनो ज़रा सोचो तो एक बार
सुनो ज़रा सीखो तो एक बार
आज के इस वक़्त से क्या करें
दिन हैं जहां सख्त से क्या करें
सुन सुनसान नगरी का ये सन्नाटा
मांग रहा दाल चावल और आटा
सिखा रहा है जो जीने का ढंग
दिखा रहा है ये सच्चाई के रंग
क्या कुछ हुआ एहसास तुझे अब
क्या कुछ हुआ आभास तुझे अब
जात-पात ऊँच-नीच अमीर-गरीब
घमंड से किया बुरे वक़्त को करीब
भागता था चांद को छूने की चाह में
दिन रात गुज़रे धन पाने की चाह में
रिश्ते नाते अब बोझ से ही हो चले
दिल में दुनिया जीतने के फूल खिले
गलतियाँ हमारी दिखा गया हमें ये
आज का वक़्त सिखा गया हमें ये
एक रब ही है हम सबका मालिक
तेरा मेरा सारी दुनिया का खालिक