सुबह की चाय
सुबह की चाय
सुबह की चाय
एक नशा नहीं अब
केवल बहाना है
तुझे याद करने का।
तू गया
ये नशा भी गया
जाते जाते
अपनी स्मृतियाँ भी
समेट लिया होता।
अपनों की बेरूखी
मार गई
अब तो बस
फूँक फूँक कर
जिंदा लाश
जला रही हूँ।
मैं इत्मिनान से
सुबह सुबह चाय
पका रही हूँ।
