"मौन व्रत"
"मौन व्रत"
जो जिह्वा से बोलते वो ही फंसते हैं
जो मौन रहते वो कभी न उलझते हैं
जाल में फंस शुक,सारिका तड़पते हैं
बगुले कभी जाल में नही उलझते हैं
ऐसे ही जो मनुष्य फ़िजूल बोलते हैं
उनको कोई भी यहां पर न गिनते हैं
जो यहां मौनव्रत को धारण करते हैं
जगवाले वो ही बात पालन करते हैं
जो इरादे पर्वत अटलता तोलते हैं
वो ही इतिहास में नाम खोलते हैं
पंछी वो ही फ़लक छुआ करते हैं
जो मौन रह लगातार पर खोलते हैं
जो बढ़-चढ़ अपनी बड़ाई बोलते हैं
वो गर्जन बादल जैसे यूँ ही डोलते हैं
कुछ कर गुजारनेवाले इंसान होते हैं
वो चुप रह अपना नसीब खोलते हैं
जो बिना योजना के पत्ते खोलते हैं
लोग उनको यहां पर मूर्ख बोलते हैं
इसलिये साखी,तू चुप की खा रोटी,
जो मौन व्रत को जिंदगी बोलते हैं
वो शुक,सारिका जैसे कभी न रोते हैं
जो चुप साधन को ही खुदा बोलते हैं
मौनवाले तो तटस्थ नजर से देखते हैं
सुनामी लहरों को भी शांत बोलते हैं।
