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Arun Gode

Abstract

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Arun Gode

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लोकतंत्र का चौथा स्तंभ.

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ.

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मीडिया नहीं खींचती अभी सत्ता की बाल की खाल,

बुनियादी समस्याओं पर नहीं करती चर्चा बेमिसाल।

सिर्फ राष्ट्रवादी और राष्ट्रद्रोहि पर मचायेगें बवाल,

कायमा नहीं करेगी लोकतंत्र के स्तंभ की मिसाल।


किसान आत्महत्या, शिक्षा, बेरोजगारी, कुपोषन,

सामूहिक बलात्कार जैसा मूल सवाल बने गौण।

अब मीडिया में दिखता हैं आमुल परिवर्तन,

जीवित समस्याओं का मीडिया नहीं रहा हैं दर्पन।


मीडिया करता प्रधान का धन के लिए समर्थन,

जन सेवा का मीडिया नहीं अब राष्ट्रव्यापी साधन। 

समाज सेवा के प्रति अभि नहीं है उसका रुझान,

कैसे बढेगी मीडिया की आय बस एकही हैं जूनून।


मीडिया करती राष्ट्रविरोधी नीतियों का बखान,

राष्ट्र से बढकर रखना हैं उसे राजनेता का ध्यान।

करके नेताओं की चाटुकारिता और समर्थन,

राजनीतिक दल देते मीडिया को धन व अभयदान।


अब प्रसार-माध्यम

बन गया हैं आय का साधन,

गरीब जनता के बुनियादी सवाल हो गये हैं गौण।

सरकार का राष्ट्रहित के प्रति ध्यान आर्कषण, 

जन-जागृती करने में नहीं बचा उसका आकर्षण।


गौहत्या,भीडहत्या, धार्मिक उन्नमाद ,हिंसक सवाल,

हिंदु-मुसलिम टकराव पर चलती फर्जी चर्चा आजकल।

मीडिया के बने हैं ये फर्जी चर्चा के अव्वल सवाल,

सरकारी धन के लिए उनकी हैं पहेल और चाल।


महान संस्कृति, गंगा- जमुना तहजीब पहुंची रसातल 

स्वार्थी मीडिया कैसा खेल रहा है ये खुनी खेल।

शहिदो के इक्कीसवीं सदी के भारत के सपनों से,

संचार माध्यमों के ये राष्ट्रद्रोहि खेल क्या खाता हैं मेल ?



क्या क्रांतिकारियों ने इसी लिए दिया अपना बलिदान,

ताकि चंद हूकुमरान और चापलुस हो जाए धनवान।

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का ऐसे होगा अगर मरण,

जन समस्या, लोकतंत्र, विकास का कैसा होगा जतन।


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