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Nandita Majee Sharma

Abstract

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Nandita Majee Sharma

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मासूमियत

मासूमियत

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अनछूए ओस की बूंद सी मासूमियत

कहां होती है भला,

ममता के आंचल से बेहतर

हिफाज़त कहां होती है भला,

नेकनीयत का दिखावा तो आम है

हर महफ़िल में,

पर हर नजर में शामिल,

शराफत कहां होती है भला,


बदी के चश्म-ओ-चिराग़ से

रौशन रहे ज़हन,

हर लौ मे इतनी हैसियत 

कहां होती है भला,

चेहरे पर चेहरे चढ़े हैं

यहां जनाब,

हर चेहरे की एक सी फितरत

कहां होती है भला.....


गुनहगारों के हिमायती हजारों मिलेंगे,

पर बेगुनाहों के लिए वकालत 

कहां होती है भला,

सिक्कों की खनक के आगे,

रिश्ते ने दम तोड़े हैं,

वर्ना मोहब्बत बांटती हुई वसीयत,

कहां होती है भला....


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