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Nandita Majee Sharma

Abstract Inspirational

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Nandita Majee Sharma

Abstract Inspirational

कैसी ये बारिश

कैसी ये बारिश

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कैसी अल्हड़ बावरी हो तुम बारिश,

नभ में सांवरी लगती हो तुम बारिश,

कभी तो मां के प्रेम ही हो दिन-रात बरसती,

कभी तुम्हें देखने को मां भी है तरसती,

कभी बरसती हो भिनी-भिनी सी,

कभी दिखाती तुम तेवर गुस्से के,

कभी हो जाती गुम झोंको में,

जैसे गुम हो नायक किस्से से,

हो तुम मतवाली मोरनी‌ सी चंचल,

पल भर में रंग-रूप बदलती रहती,

कभी तैरती मछली सी संग-संग धारा के,

कभी मुंडेर की चिड़िया सी चहकती रहती।

समझ ना पाई मैं तुमको कभी, 

इसका होता है अफसोस मुझे,

क्यों ना बन पाई मैं बारिश सी बहुरुपी,

मानव‌रुपी जन्म ने क्यों कर दिया ठोस मुझे।



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