आज का सपना
आज का सपना
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आज का सपना
कुछ था अपना
तुम और हम थे
खुशियों में गुम थे
ना ही कोई फिक्र
ना किसी का ज़िक्र
फ़िर ट्विस्ट ये आया
जो किसी को ना भाया
ज़िक्र सबके होने लगे
फिक्र के बीज बोने लगे
था तनाव ही तनाव
सूझे ना कोई बचाव
तन्हाई घर करने लगी
बेवफाई भी होने लगी
हुए एक दूजे के दुश्मन
भर चुका था चंचल मन
घबराके आँख खुल गयी
चाय की प्याली गिर गयी
नींद में भी अखबार साथ था
इस सपने में इसका हाथ था
प्रेमविवाह टूटने की थी एक ख़बर
कर रही थी नींद में भी जो असर
ख़्यालों की दुनिया में जरूरतें नहीं होतीं
हक़ीक़त की दुनिया अपने होश नहीं खोती।