तन्हा सी रात
तन्हा सी रात
वक़्त दे रहा था मेरे हौसलों को मात
थी इक वो भूली बिसरी तन्हा सी रात
चारों तरफ़ छाया था इक गहरा अँधेरा
मुश्किलों का था बड़ा ही सख्त पहरा
रास्ता कोई मेरी मंज़िल पे ना ठहरा
हर वक़्त तारी था रंज ओ ग़म गहरा
सब्र की रौशनी फिर झिलमिलायी
दुःखों से मेरे मुझे बाहर खींच लायी
इबादतों से हुई तारीक रातें नूरानी
सच होने लगी यूँ सुखों की कहानी
क्या होगा क्यूँ तुझे है ये बड़ी फ़िक्र
जब दिल में है तेरे रब का ही ज़िक्र
वही तो है मुश्किल में सम्भालने वाला
पत्थर से हरी कोंपल निकालने वाला
हँसती मुस्कराती सुकूं भरी सुलझी सी
रहमत से उसकी दुनिया होगी नयी सी
तुझ से उम्मीद की शमा राह दिखाती है
तेरी मोहब्बत धूप में ठंडी छाँव लाती है
उजालों की चाह में अँधेरों का कैसा डर
होगी सारी दुनिया सुकूं की रौशनी में तर
आयेगा ख़ुशी का दौर भी ये यकीं रखना
हालातों के तूफानों से हरगिज़ ना थमना
आ वक़्त को बता दे तेरा फ़ैसला क्या है
मुश्किलों को दिखा दे तेरा हौसला क्या है
आदिल तू ए मालिक ए दो जहां रहीम तू
देता है सबको बेहिसाब ही ऐसा करीम तू
हुआ दिल बेफिक्र जब भी तेरे दर पे आया
होकर खुश फिर सजदे में मैंने सर झुकाया।