धनक रंग
धनक रंग
ज़मीं ये क्या फ़लक को सुनाने लगी है
धनक रंग सी खुशियों को गाने लगी है
फैला है हर सिम्त देखो कैसा उजाला
दबे कदमों से शब जैसे जाने लगी है
बारिश की बूँदें फ़िज़ा में बिखर कर
क्यूँ सितारों की तपिश बुझाने लगी है
थे साहिल पे जो नक़्श ए क़दम कभी
उन्हें वक़्त की लहरें आ मिटाने लगी है
सुन पत्तों की बातें दरख़्तों की आहें
हवाएँ भी तेरे क़िस्से सुनाने लगी है
है खड़ी मंज़िल सामने फैलाये बाहें
अपनी सिम्त हमें ये बुलाने लगी है
था नूर मद्धम और मुन्तजिर सी आँखें
मौसम ए बहार से पुरनूर हो गयी शाखें
हैरान है चाँद थमी सी सितारों की साँसें
छा गये महफ़िल में करके तेरी ही बातें।