STORYMIRROR

Subhash Khankal

Abstract

4.5  

Subhash Khankal

Abstract

मुखौटा

मुखौटा

1 min
306


पहले से मुखौटा है चेहरे पे

ये नया लगाया उस पे पर्दा क्यूँ

वादे नेताओं के रोटी दे न सके

हवा से पेट भरने का वादा क्यूँ


हमारा तुम्हारा एक है वतन

फिर मेरा आधा तेरा आधा क्यूँ

उसे चाहनेवाली तो हज़ारो थी

किशन ने चुनी सिर्फ राधा क्यूँ


खुदा ने रचा सबको एक जैसा

किसी को कम किसी को ज्यादा क्यूँ

इश्क तो है अपने आप में मासूम

उसे ज़िहादी बनाने का इरादा क्यूँ।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Subhash Khankal

Similar hindi poem from Abstract