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NOOR E ISHAL

Abstract Tragedy

4.2  

NOOR E ISHAL

Abstract Tragedy

सुकूं की शाम चाहिये

सुकूं की शाम चाहिये

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एक सुकूं की शाम चाहिये

और थोड़ा आराम चाहिये

कभी भागे सपनों के पीछे

कभी भागे अपनों के पीछे


एक सुकूं की शाम चाहिये

और थोड़ा आराम चाहिये

 किसकी कर रहे हैं बन्दगी

 मशीन हो चली ये ज़िंदगी


एक सुकूं की शाम चाहिये

और थोड़ा आराम चाहिये

 ये नहीं हुआ वो नहीं हुआ

 इक काम भी लो नहीं हुआ

एक सुकूं की शाम चाहिये

और थोड़ा आराम चाहिये

क्यूँ है इतनी अफरा-तफरी

सुबह शाम है बिखरी बिखरी


एक सुकूं की शाम चाहिये

और थोड़ा आराम चाहिये

ख़ुद से थोड़ा घुल मिल जाऊँ

गीत खुशी का मैं लिख लाऊँ


एक सुकूं की शाम चाहिये

और थोड़ा आराम चाहिये

करूँ वो जो मैं करना चाहूँ

हँसी चेहरे पर रखना चाहूँ


एक सुकूं की शाम चाहिये

और थोड़ा आराम चाहिये

ए फ़ुरसत तू आ कभी मेरे पास

ना दूर करें तुझे रखें आस पास।


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