दान- धर्म और भ्रष्टाचार
दान- धर्म और भ्रष्टाचार
संगम, कितना सुन्दर आज धरा पर
दान, धर्म और भ्रष्टाचार
एक हाथ से काला धन लेते
फिर मुख से करते धर्म-कर्म की बात।।
पीठ के पीछे छुरा घोंपतें
दुहाई भी देते मिलकर साथ
जनता से लेते दान हमेशा
फोटों में दिखते करते दान।।
दूसरे की तरक्की बर्दाश्त न होती
सोचे, उसकी बर्बादी के उपाय वो दिन-रात
मुँह के मीठे इतने होते
उनसे भला न दूसरा यार।।
धर्म के नाम दंगे भड़काते
रखते, मूँह में राम-रहीम और बगल में कटार
भाई-भाई का खून बहा
राजनीति करते वो दिन-रात।।
