बेवफाई का शबब
बेवफाई का शबब
चांदनी रातों में जो वादा निभाने आए थे,
सूरज की किरणों में वो परछाईं छुपाए थे।
जो कहते थे हर घड़ी साथ निभाएंगे,
आज राहों में अकेला छोड़ आए थे।
दिल के हर कोने में बसाया था जिन्हें,
वो सपनों को भी वीरान बना गए।
वफ़ा की किताब में नाम था उनका,
पर खुद ही उस किताब को जला गए।
शिकायत का हक़ भी मुझसे छीन लिया,
अपनी बेवफाई को भी मेरा क़ुसूर बता गए।
सजदे में झुके थे जिनके प्यार में,
वो इबादत का हर निशां मिटा गए।
अब रातें चुप हैं, और ख्वाब भी दूर हैं,
दिल की हर धड़कन जैसे मजबूर हैं।
मगर बेवफाई की इस चोट से सबक सीखा है,
अब किसी का अक्स दिल में बसाना भूल से भी नहीं देखा है।
