क्रोध
क्रोध
क्रोध की लहरों में इंसान खो जाता है,
विवेक की आवाज़ धुंधली हो जाती है।
आग की तरह भड़कता है मन,
सच्चाई की राह से भटक जाता है।
शांति का फूल मुरझा जाता है,
समझदारी का दीप बुझ जाता है।
इस आग में सब कुछ जल जाता है,
क्रोध में इंसान खुद को भुला जाता है।
जो क्रोध करता है वह विवेक में नहीं रहता और
कोई बार-बार उल्टी आंख पर गलतियां करता जाता है.
