"ख्याल"
"ख्याल"
कभी-कभी, आता हैं मन में यह ख्याल।
आखिर, इस जीवन में मचा क्यों बवाल।
कितना सरल जीवन था,
कठिन क्यों हो गया।
भोला-सा वो बचपन,
पता नहीं कहां खो गया।
माना उस समय, साक्षरता बहुत कम थी।
पर, संस्कार शिक्षा में बड़ा दम था ।।
कहां खो गई, वो गांव की दालान।
दद्दा जी सुनाते थे गीता पुराण।।
दिखती नहीं पनहारिन, गांव के कुआं।
आती नहीं सावन पे हमारी बुआ।।
खाई नहीं कबसे हमने चूल्हे की रोटी।
बिगड़ गया मुन्ना, न जर हुई खोटी।।
सूख गये गांव के तलैया और ताल।
गांव की बाखर के बहुत बुरे हाल।।
मन की सुख शांति सारी छिन गई।
विकास के नाम पर बलि चढ़ गई।।