कोई भी बच्ची अब बने ना निर्भया
कोई भी बच्ची अब बने ना निर्भया
उसकी आँखों मे थे, सपने सब बड़े
उसकी हर राहों मे थे पापा संग खड़े
लगती थी हो जैसे वो, कोई अप्सरा
हँस कर कर देती वो मुश्किल को छोटा
तो बातो ही बातो मे करती ऐलान
हा था एक दरिंदा जिसकी नियत खराब
हँसते खेलते परिवार को थी नज़र लग गयी
उस बच्ची की चीख को किसी ने ना सुनी
उस नन्ही के जिस्मो ने क्या क्या सहा
एहसास ना था उसको की, क्या हो चला
जब समझती वो सबकुछ तो देर हो चली
कुछ कहने से पहले ही साँसे थम गयी
पूछूँ तुझसे ये बात ऐ मेरे खुदा
साँसे क्यो छीनी तूने मेरी बेवजह
मम्मी की बेटा थी मैं, पापा की परी
सपने बड़े थे मेरे, मेरी ये कमी
क्यो छीनी तूने मुझसे मेरी जिंदगी
जिस्मो मे खून मेरे तू कहीं पड़ी
वो नन्ही वो बच्ची तू सुन मेरी बात
ना तुझमे कमी है कोई तू है बड़ी ख़ास
ना अलविदा आभार बस शुक्रिया करूँगी तेरा मेरे समाज
तूने लड़की को पढ़या तूने लड़की को बढ़ाया
उस दरिंदे को दरिंदा भी तूने है बनाया
जब आया वो पास मेरे धड़कने बड़ी
रोई मै खूब लेकिन, उसने ना सुनी
करके हदो को पार उसने जो किया
कह ना सकु उसको जो, मैंने है सहा
है आशा मेरी की इंसाफ हो मेरा
कोई भी बच्ची अब बने ना निर्भया।
