बेखबर
बेखबर
कब, कहाँ, किधर
कुछ पता नहीं....
जिंदगी चल रही पर
कोई ख़बर नहीं....
एक पल देखूँ तो
बहुत कुछ है, पर
आने वाले कल का
कुछ पता नहीं....
'दशा ' तो दिख रही है
लेकिन....
'दिशा ' की ख़बर नहीं....
' यूँ 'तो अपनों से घिरी हूँ
जहाँ अपनापन हो
ऐसी....
कोई जगह नहीं
कब, कहाँ, किधर
कुछ पता नहीं
जिंदगी चल रही है
पर कोई ख़बर नहीं....!
