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Sunil Kumar

Tragedy

4  

Sunil Kumar

Tragedy

मीत मेरे बचपन के

मीत मेरे बचपन के

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मीत मेरे बचपन के न जाने कहां खो गए

छोड़ गांव की गलियां 

शहर की भीड़ का हिस्सा हो गए

मीत मेरे बचपन के न जाने कहां खो गए।


भूल बचपन के सब खेल सुहाने

शामिल जिंदगी की दौड़ में हो गए

मीत मेरे बचपन के न जाने कहां खो गए।


गांव की वो गलियां कल-कल करती नदियां

बात सपनों की अब हो गए 

मीत मेरे बचपन के न जाने कहां खो गए।


मिल-जुलकर मनाना सब तीज-त्यौहार

बांटना आपस में खुशियां और प्यार

सीमित अब हो गए 

मीत मेरे बचपन के न जाने कहां खो गए।


छोड़ गांव की मदमस्त बयार 

आदी कूलर- एसी के हो गए

भूल गांव के गन्नों की मिठास 

प्रेमी पेप्सी- कोला के हो गए

मीत मेरे बचपन के न जाने कहां खो गए। 



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