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Nityanand Vajpayee

Abstract Tragedy Inspirational

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Nityanand Vajpayee

Abstract Tragedy Inspirational

तो फिर क्या होगा

तो फिर क्या होगा

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गर अहिंसा की हुई हार तो फिर क्या होगा

आई ग़द्दारों' की सरकार तो फिर क्या होगा


कुछ जो इंसाँ के लहू में हैं सने हाथ वही

बन गये तख़्त के हक़दार तो फिर क्या होगा


रहनुमा ख़ुद को बताने लगे सय्याद भी अब

मौत बाँटेंगे धुआँधार तो फिर क्या होगा


जिम्मेदारी दो जिन्हें गोश्त की रखवाली की

हों वही गिद्धों के सरदार तो फिर क्या होगा


सारे क़िरदार हैं क़ातिल तो कहे कौन किसे

अहल-ए- मनसब हों गुनहगार तो फिर क्या होगा


तालिब-ए- इल्म उन्हें लोग समझ बैठे हैं,

कल को निकले वही अय्यार तो फिर क्या होगा


'नित्य' मौतों के फ़रिश्तों से है उम्मीद भी क्या

ताज़ पहने कोई हथियार तो फिर क्या होगा



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