नारी
नारी
सम्माननीय है नारि रूप, जग जननी का अवतार यही।
मानव सभ्यता वेल इनकी, उर्वरता से ही फलित रही।।
संस्कृतियों की हैं मूल यही, ऋणवंत इन्हीं का विश्व सदा।
नर अंकुर,पल्लव,पुष्पों की, क्यारियाँ यही हैं शील-प्रदा।।
हैं मनु की श्रद्धा रूप यही, कश्यप की अदिति यही तो हैं।
पृथ्वी स्वरूप में अथ हैं यह, पावक की प्रमिति यही तो हैं।।
शर्मिष्ठा हैं ययाति की यह, हैं शकुंतला दुष्यन्तों की।
द्रोपदी और सीता हैं यह, दुर्योधन रावण अंतो की।।
शिव भी शव होते शक्ति बिना, शव को शिव करतीं शक्ति सही।
मानव सभ्यता वेल इनकी, उर्वरता से ही फलित रही।।
इनकी कोखों ने देव दैत्य, दोनों में भेद किया है कब।
सुर नर मुनि किन्नर नाग विहग, प्रति व्यष्टि-समष्टि यही हैं सब।।
हैं गर्भ लिये ब्रह्मांड पूर्ण, यह ही काली हैं पालक हैं।
शिव में शिवत्व कर स्थापित, शिवदूती काल सुचालक हैं।।
उत्पत्ति और स्थिति पालन कर, करतीं लय प्रलय नारि ही हैं।
फिरभी करुणा वरुणालय हैं, ममतामय हृदय नारि ही हैं।।
मैं 'नित्य' स्वयं इनकी कृति हूँ, दुर्भाङ्कुर मैं यह मातु-मही।
मानव सभ्यता वेल इनकी, उर्वरता से ही फलित रही।।
यह व्यास प्रसूता मच्छोदरि, यह कपिल मातु हैं देवहूति।
षटदर्शन अट्ठारह पुराण, सब इनकी ही तो है प्रभूति।।
कौशल्या सुत की उत्तमता, पुरुषोत्मता की सीमा है।
देवकी तनय की गीता से, सुधि ब्रह्मज्ञान तक धीमा है।।
माताओं का ही अर्भ सृष्टि, फिर कविकुल क्यों कर ऋणी न हो।
नारी की महिमा गायन हित, लेखनी भला क्यों प्रणी न हो।।
इसलिए 'नित्य' ने आज विमल, महिलाओं की शुभकीर्ति कही।
मानव सभ्यता वेल इनकी, उर्वरता से ही फलित।
