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Nityanand Vajpayee

Abstract

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Nityanand Vajpayee

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नारी

नारी

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सम्माननीय है नारि रूप, जग जननी का अवतार यही।

मानव सभ्यता वे वे, उर्वरता से ही फलित हो रही है।।


अनुयायी की मूल हैं, ऋणवंत इन सीमित विश्व सदा।

नर अंकर, पल्लव, पुष्पों की, क्यारियाँ यही हैं शील-प्रदा।।

हैं मनु की श्रद्धा रूप यही, कश्यप की अदिति यही तो हैं।

पृथ्वी स्वरूप में अथ हैं यह, पावक की प्रमिति यही तो हैं।।


शर्मिष्ठा हैं ययाति की यह, हैं शकुंतला दुष्यंतों की।

द्रोपदी और सीता हैं यह, दुर्योधन रावण अंतो की।।

शिव भी शव होते शक्ति बिना, शव को शिव करतीं शक्ति सही।

मानव सभ्यता वे वे, उर्वरता से ही फलित हो रही है।।


उनके कोखों ने देव दैत्य, दोनों में भेद किया है।

सुर मुनि किन्नर नाग विहग, प्रति व्यष्टि-समष्टि यही हैं सब।।

हैं गर्भ के लिए ब्रह्मांड पूर्ण, यह ही काली हैं पालकी।

शिव में शिवत्व कर स्थापित, शिवदूती काल सुचालक हैं।।

उत्पत्ति और स्थिति पालन कर, करतीं लय प्रलय नारि ही हैं।


फिरभी करुणा वरुण हैं, ममतामय हृदय नारि ही हैं।।

मैं 'नित्य' स्वयं उनकी कृति हूँ, दुर्भाङकुर मैं यह मातु-मही।

*मानव सभ्यता वे वे, उर्वरता से ही फलित हो रही है।।


यह व्यास प्रसूता मच्छोदरि, यह कपिल मातु हैं देवहूति।

षट्दर्शन अट्ठरह पुराण, सब इनके ही तो है प्रभूति।।

कौशल्या सुत की श्रेष्ठता, पुरुषोत्तमता की सीमा है।

देवकी तनय की गीता से, सुधि ब्रह्मज्ञान तक मंद है।।


मदर्स का ही अर्भ सृष्टि, फिर कविकुल क्यों कर्ज़ न लें।

नारी की महिमा गायन हित, लेखनी भला क्यों प्रणी न हो।।

इसलिए 'नित्य' ने आज विमल, महिलाओं की शुभकीर्ति कही।

मानव सभ्यता वे वे, उर्वरता से ही फलित हो रही है।।


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