राष्ट्र कीर्ति गान
राष्ट्र कीर्ति गान
गीत
पश्चिमोत्तर में मरुथलमय, अग्नि के जलते बाण लिए।
हिमालय उत्तर में प्रहरी, शिखर उत्तुंग कृपाण लिए।।
सिंधु-सतलुज-चिनाव-झेलम, और रावी-यमुना-गङ्गा।
नर्मदा-कृष्णा- कावेरी, करें जनगण का मन चंगा।।
मदिर मलयानिल मंद बहे, सुगंधित मधुमय घ्राण लिए।
हिमालय उत्तर में प्रहरी,शिखर उत्तुंग कृपाण लिए।।
वेद-वेदांत उपनिषद नव, शास्त्र संस्कार नवोन्मेषण।
सौम्य षट-दर्शन मीमांसा, ब्रह्म का सुमधुर अन्वेषण।।
सनातन संस्कृति यह अपनी, विश्व के हित कल्याण लिए।
हिमालय उत्तर में प्रहरी, शिखर उत्तुंग कृपाण लिए।।
राम मर्यादा पुरुषोत्तम, कृष्ण कर्मों में परमोत्तम।
बुद्ध-अरिहंत और नानक, शाँति के प्रेषक सर्वोत्तम।।
पूर्ण भूमंडल के जन-जन, हेतु आध्यात्मिक त्राण लिए।
हिमालय उत्तर में प्रहरी, शिखर उत्तुंग कृपाण लिए।।
शौर्य के सिंधु प्रताप-शिवा, शूरमा गुरुगोविंद साहब।।
शब्दभेदी चौहान हुए, महोबा के परमाल विभव।।
पेशवा वाजीराव बली, हथेली पर निज प्राण लिए।
हिमालय उत्तर में प्रहरी,शिखर उत्तुंग कृपाण लिए।।
यहाँ नारियाँ बने चंडी, चढ़ें अरि-सेना छितराएँ।
कई अनलाभिषिक्त होकर, महा-जौहरिणी कहलाएँ।।
शौर्य मिट्टी में है मेरी, भरा अभिनव निर्माण लिए।
हिमालय उत्तर में प्रहरी, शिखर उत्तुंग कृपाण लिए।।
हजारों बार लुटा हूँ मैं, कई कोशिशें हुईं फिर भी।
मिटाने को संस्कृति मेरी, कोटि साजिशें हुईं फिर भी।।
करोड़ों बलिदानों द्वारा, हुआ स्वाधीन पुराण लिए।
हिमालय उत्तर में प्रहरी, शिखर उत्तुंग कृपाण लिए।।
