स्तुति
स्तुति
अतुलित बल के धाम पवन सुत, शंकर के अवतारी हैं।
संकटमोचन कहलाते जो, बजरङ्गी बलधारी हैं।।
महावीर बस यही जगत में, बुद्धि और बल के दाता।
इनकी कृपा मात्र से हर नर,भव सागर से तर जाता।।
दुर्गुण रोग-दोष कलि-कल्मष, सब इनसे घबराते हैं।
नीलांजन के बंधन मोचक,लंका भष्म बनाते हैं।।
राम-चरण-पंकज के प्रेमी, सीता के दुख-हारी हैं।
संकटमोचन कहलाते जो, बजरङ्गी बलधारी हैं।।
दुर्गम सिंधु लाँघ हनुमत ने, राम काज सब पूर्ण किए।
दशकंधर से बल पयोधि के, अहम-वहम सब चूर्ण किए।।
सारे दुर्गम काज जगत के,हनुमत सुगम बना जाते।
सकल मनोरथ पूर्ण करें यह, हृदय राम-सिय बैठाते।।
किंकर ! प्यारे रघुनंदन के,असुरों के क्षय-कारी हैं।
संकटमोचन कहलाते जो, बजरङ्गी बलधारी हैं।।
कुमति निवारक सुमति-उधारक, सद-निर्णय संवर्धक हैं।
कलिमलहरण करें भक्तों के, शुद्धि-बुद्धि बलसर्जक हैं।।
अतिशय परिश्रमी अंजनि सुत, पिता केसरी के नंदन।
राम-भक्ति में निपुण परात्पर, प्रभु पद का करते वंदन।।
राम-गुलाम यही इनके दर, सारे देव भिखारी हैं।
संकटमोचन कहलाते जो, बजरङ्गी बलधारी हैं।।
सूर्य शिष्य मेधावी सबसे, उलट वेग चल ज्ञान लिया।
ज्ञान-सूर्य से तपे और फिर, भक्तिभाव विज्ञान जिया।।
राम-नाम संकीर्तन करके, अपने वश में राम किए।
रोम-रोम में राम-राम लिख, रामचंद्र के काम किए।।
सिय-रघुवर गुणरूप ग्राम के, पूण्य अरण्य बिहारी हैं।
संकटमोचन कहलाते जो, बजरङ्गी बलधारी हैं।।
