पत्ता
पत्ता
पत्ता सोचता है हमेशा,
मैं क्यों नहीं हूँ फूल।
सभी देखते हैं पिरोतें है इसे,
पर जाते हैं मुझे भूल।
क्यों नहीं हूँ मैं खूबसूरत,
इस पुष्प जैसा।
और क्यों नहीं देते जन,
मुझे प्यार वैसा।
फिर लगा उसे,
कि उसका भी है व्यक्तित्व।
क्योंकि पुष्प के अस्तित्व में है,
उसका भी महत्व।
धूप पड़ी ज्यादा,
तो फूल लगता है मुरझाने।
सूरज की गर्मी पाकर,
पत्ता लगता है और खिलखिलाने।
तेज हवाएँ भी,
बिखेर देती हैं फूलों की सुंदरता।
पत्ते को क्या था होने वाला,
वह तो रहता है एकदम तना।
पत्ते बनाते है पेड़ों का भोजन,
वही करते हैं फूलों का सृजन।
फूल बनते हैं हार गले का,
तो पत्ते बनते है घरों कि तोरण।
दूसरों से करना तुलना,
है स्वयं का अपमान।
क्यों कि हर व्यक्ति की होती है,
अपनी अलग पहचान।
क्यों कि हर व्यक्ति की होती है,
अपनी अलग पहचान।